तनहा ये राहे, मंजिल
न कोई
लंबा सफर है साहिल
न कोई ॥
यादों में धुंदले, कुछ
पल है तेरे
कुछ बिखरे बिखरे, कुछ
है सवारे
न आहट है तेरी, न
दस्तक है कोई
लंबा सफर है साहिल
न कोई ॥
ख्वाबों में हलचल, कभी
थी बहारे
कटी उम्र सारी उसी के सहारे
लेकर उमंगे, आया
न कोई
लंबा सफर है साहिल
न कोई ॥
परवाह ना थी, किसीको
हमारी
आंखों में थी सिर्फ अश्कोंकी बारी
उम्मीद अब ना, हसरत
न कोई
लंबा सफर है साहिल
न कोई ॥
गुमनाम गलियां, गुमनाम
मेले
चलते रहे हम, अकेले
अकेले
अब तो है आदत शिकायत न कोई
लंबा सफर है साहिल
न कोई ॥
जयश्री अंबासकर
You can listen this Poem in My Voice on the link below
No comments:
Post a Comment