चुस्त लम्हें जिंदगीके खो गये जाने किधर
सुस्त सी खामोशियों में सिर्फ यादोंके भंवर
चंद बादल आसमां मे फिर भी था ऐसा असर
रोशनी सूरज की मेरे खो गयी जाने किधर
दूर तक कोई किनारा,
अब
भी ना आता नजर
डूबती कश्ती में कैसे, खत्म होगा ये सफर
सुबह की ना ताजगी है, रात को ना हमसफर
अब तो हिस्से में पडी है सिर्फ सूनी दोपहर
शोरगुल भी था कभी पर, अब तो जीवन
खंडहर
बस है सन्नाटों में लिपटे, सर्द से शामो सहर
जयश्री अंबासकर
You can listen this गझल on the link below
No comments:
Post a Comment