साथ लाया था वो सेहरा और खिंचा दायरा
अब तो जीवन भर है पहरा और खिंचा दायरा
ख्वाब आंखो में हजारो, जिंदगी की आस है
ख्वाब टूटे, सब है बिखरा और खिंचा
दायरा
दौडना तो दूर है, चलना भी मुश्किल है यहां
बेडियोंके के साथ कोहरा और खिंचा दायरा
बंद कमरा और आंसू, इतनी सीमित जिंदगी
अब तो है गुमनाम चेहरा और खिंचा दायरा
इस फलक पर नाम अपना देखने की चाह है
दिल है घायल, वक्त ठहरा और खिंचा दायरा
कितने दिन ऐसे जियेंगे, बस अभी सारे जुलम
है अटल संघर्ष गहरा और खिंचा दायरा
एक दिन आएगा ऐसा, कुछ करेंगे खुद ही हम
तोड देंगे हर वो पहरा और खिंचा दायरा
जयश्री अंबासकर
ही कविता माझ्या आवाजात खाली दिलेल्या लिंकवर ऐकता येईल
No comments:
Post a Comment