न बादल, न बिजली, न सावन की आहट
किताबों के पन्नों में बस सरसराहट
कहां गुम हसीं और वो खिलखिलाहट
क्यूं है उदासी में सहमा सा घूंघट
पलकों में कितनी गुमसुम शरारत
आंखों की बोली कहां है वो नटखट
दुनिया जहां की छोडो शराफत
अब तो जरा सी कर दो बगावत
बदल दो जमाने से डरने की आदत
करो अब तो दिल से दिल की हिफाजत
गर है जरा सी खुद से मोहब्बत
दिल को खुशी की दे दो इजाजत
जयश्री कुलकर्णी अंबासकर