Tuesday, June 29, 2021

ख्वाब तो आजाद है

तुम अगर यूं साथ हो तो जिंदगी आबाद है
बिन तुम्हारे सच कहूं तो जिंदगी बरबाद है

आसमां के चांद तू, खुद पे ना अब गुमान कर
इस जमीं पर तुझसे बेहतर देख मेरा चांद है

क्यूं हकीकत और ख्वाबों में खडी दीवार है
जिंदगी से बस हमारी इतनी सी फ़रियाद है

आशिकी में होश खो के जिंदगी मदहोश है
अब जहन में सिर्फ़ तुम हो और तुम्हारी याद है

जिंदगी है बेरहम और कायदे भी सख्त है  
खुश हूं मै की अब भी मेरे ख्वाब तो आजाद है

इश्क ही अब जिंदगी और  आशिकी हर सांस है
अब खुदाई और खुदा भी सब तुम्हारे बाद है   

जयश्री अंबासकर

ये गझल मेरी आवाज में नीचे दी गयी लिंक पर सुन सकते है



Friday, June 25, 2021

यकीन कर

जब जब जीवन लगे पहेली
सुलझाने की कोशिश कर
कही ना कही हर सवाल का
होगा उत्तर यकीन कर

राते लंबी कितनी भी हो
देख ख्वाब, ना आहे भर
सुबह खडी उस पार रातके
सूरज पे तू यकीन कर

कडी धूपके बाद हमेशा
सावन का इंतजार कर
काले बादल घिर आये तो
होगी बारिश यकीन कर

कठिन घडी आयी है लेकिन
दौर चलेगा ये पलभर
समय ठहरता नही कभी भी
चलने पर तू यकीन कर

हार कभी तो, कभी जीत है
खुद के दम पे कोशिश कर
मुमकिन है जीतना हारके
इतना खुद पे यकीन कर

जयश्री अंबासकर

ये कविता आप नीचे दी गयी लिंक पर सुन सकते है



Thursday, June 24, 2021

वृत्त - भुजंगप्रयात

वृत्तभुजंगप्रयात
लगागा लगागा लगागा लगागा

शिदोरीत बांधून भक्ती विठूची
निघाले झुगारून नाती जगाची
जरी वाट अंधूक अंधूक होती
तरी ओढ चित्ती विठू मीलनाची

तमा ना उन्हाची, दर्या डोंगरांची
रानावनाची काट्याकुट्यांची
कशाची भिती ना अता या कुडीला
मनी फक्त इच्छा विठू शोधण्याची

नसे दु:ख काही न चिंता उद्याची
नुरे कोणती आस  ऐहीकतेची
अनासक्त झाले तरी वाटते रे
दिठीला मिळावी मिठी सावळ्याची

न डोळ्यात गर्दी अता आसवांची
न जाणीव नेणीव आता कशाची
झगा षड-रिपुंचा न देहावरी या
अता भेट व्हावी जिवाची शिवाची

जयश्री अंबासकर

ही कविता तुम्हाला खाली दिलेल्या लिंकवर ऐकता येईल.



Wednesday, June 23, 2021

दायरा

 साथ लाया था वो सेहरा और खिंचा दायरा
अब तो जीवन भर है पहरा और खिंचा दायरा

ख्वाब आंखो में हजारो, जिंदगी की आस है
ख्वाब टूटे, सब है बिखरा और खिंचा दायरा

दौडना तो दूर है, चलना भी मुश्किल है यहां
बेडियोंके के साथ कोहरा और खिंचा दायरा

बंद कमरा और आंसू, इतनी सीमित जिंदगी
अब तो है गुमनाम चेहरा और खिंचा दायरा

इस फलक पर नाम अपना देखने की चाह है
दिल है घायल, वक्त ठहरा और खिंचा दायरा

कितने दिन ऐसे जियेंगे, बस अभी सारे जुलम
है अटल संघर्ष गहरा और खिंचा दायरा

एक दिन आएगा ऐसा, कुछ करेंगे खुद ही हम
तोड देंगे हर वो पहरा और खिंचा दायरा

जयश्री अंबासकर

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Saturday, June 19, 2021

वृत्त - आनंद, जयश्री अंबासकर

वृत्त – आनंद 
गा गालगाल गागा

देतोस का उजाळा 
त्या धुंद आठवांना
होतोस काय हळवा
स्पर्शून आठवांना

त्या एकल्या दुपारी
तो प्रश्न कापरासा
होकार लाजरासा
इन्कारही जरासा

झाल्या कितीक नंतर
सांजा अजून कातर
जगणे कठीण होते
विरहातले निरंतर

आहे तसा शहाणा
अपुला जरी दुरावा
आतून पेट घेतो
पण हाच रे दुरावा

तो चंद्र अजुन अर्धा
दोघात वाटलेला
अन् पौर्णिमेत अजुनी
तू मुक्त सांडलेला

जयश्री अंबासकर

Friday, June 18, 2021

हल्ली

जिंकण्याने सतत मी बेजार हल्ली
वाटते घ्यावी जरा माघार हल्ली

थांबले दिसते तुझे लढणेच आता
हारण्याचा थेट की स्वीकार हल्ली ?

संपली नाही लढाई जीवनाची
केवढे बोथट तुझे हत्यार हल्ली

शांतता आहे खरी की भास आहे
होत नाही कोणताही वार हल्ली

लागते रात्री सुखाची झोप आता
ना लढाई, ना चढाई फार हल्ली

मेळ झाला थांबला संहार हल्ली
जीवनाला देखणा आकार हल्ली

जयश्री अंबासकर

Thursday, June 17, 2021

सन्नाटा

चुस्त लम्हें जिंदगीके खो गये जाने किधर
सुस्त सी खामोशियों में सिर्फ यादोंके भंवर

चंद
बादल आसमां मे फिर भी था ऐसा असर
रोशनी सूरज की मेरे खो गयी जाने किधर

दूर तक कोई किनारा, अब भी ना आता नजर
डूबती कश्ती में कैसे, खत्म होगा ये सफर

सुबह की ना ताजगी है, रात को ना हमसफर
अब तो हिस्से में पडी है सिर्फ सूनी दोपहर

शोरगुल भी था कभी पर, अब तो जीवन  खंडहर
बस है सन्नाटों में लिपटे, सर्द से शामो सहर

जयश्री अंबासकर

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Monday, June 14, 2021

हमराज

 मौजूद था पर आसमां में, चांद कुछ नाराज था
बेशक मेरे मेहबूब के ही, नूर का आगाज था      

क्या करू तारीफ उनकी, हर अदा थी शायरी
शायरीमें कातिलाना, क्या गजब अंदाज था

जन्नत से उतरी हूर सी थी, क्या  करू लफ़्जोबयां 
नर्गिसी मासूम चेहरा, हुस्न का सरताज था  

उनकी वो संजीदगी में, नर्म सा संगीत था
खिलखिलाना भी तो उनका, जैसे कोई साज था

शाम की तनहाइयों में दर्द का एहसास था
दर्द ना उनका कभी हमदर्द का मोहताज था

देखी है आंखों में उनकी, दर्द की परछाइयाँ  
जख्म क्या था, दर्द क्या था, ये छुपा इक राज था

चंद यादे छोडकर, चुपचाप वो रुखसत हुए
राज सीने में दफन और बस खुदा हमराज था

जयश्री अंबासकर

ये शायरी आप मेरी आवाज में नीचे दी हुई लिंक पर सुन सकते है



Saturday, June 12, 2021

वृत्त - अनलज्वाला

वृत्त - अनलज्वाला
मात्रा ८ ८ ८

वणवण फिरुनी, धावुनि दमतो संध्याकाळी
दिवस उसासे टाकत असतो संध्याकाळी

थकून वारा निपचित असतो संध्याकाळी
कधी विरक्ती घेउन फिरतो संध्याकाळी

दिवसभराची दिनकर करतो वेठबिगारी
दमून सुटका मागत असतो संध्याकाळी

निशेस येण्या अवधी असतो अजुन जरा अन्
दिवसच हातुन निसटत असतो संध्याकाळी

विचार भलता येतो कायम कातरवेळी
मनास विळखा घालुन बसतो संध्याकाळी

चुकाच केल्या आजवरी का वाटत असते
उगाच शिक्षा भोगत बसतो संध्याकाळी

भरकटलेले गलबत माझे सावरतो मी
नवा किनारा शोधत फिरतो संध्याकाळी

नव्या दमाने खेळत असतो रोज सकाळी
पुन्हा तसाच पराजित असतो संध्याकाळी

चराचराच्या नश्वरतेचा जागर होतो
तनमन सारे व्याकुळ करतो संध्याकाळी

प्रसन्न करतो देवघरातुन सांजदिवा मग
मनास उजळत तेवत असतो संध्याकाळी

जयश्री अंबासकर

तुम्हाला ही गझल माझ्या आवाजात खाली दिलेल्या लिंकवर ऐकता येईल.



Sunday, June 06, 2021

लंबा सफर है साहिल न कोई

तनहा ये राहे, मंजिल न कोई
लंबा सफर है  साहिल न कोई ॥

यादों में धुंदले, कुछ पल है तेरे
कुछ बिखरे बिखरे, कुछ है सवारे
न आहट है तेरी, न दस्तक है कोई
लंबा सफर है  साहिल न कोई ॥

ख्वाबों में हलचल, कभी थी बहारे
कटी उम्र सारी उसी के सहारे
लेकर उमंगे, आया न कोई
लंबा सफर है  साहिल न कोई ॥

परवाह ना थी, किसीको हमारी
आंखों में थी सिर्फ अश्कोंकी बारी
उम्मीद अब ना, हसरत न कोई
लंबा सफर है  साहिल न कोई ॥

गुमनाम गलियां, गुमनाम मेले
चलते रहे हम, अकेले अकेले
अब तो है आदत शिकायत न कोई
लंबा सफर है  साहिल न कोई ॥

जयश्री अंबासकर

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Friday, June 04, 2021

वृत्त - शुद्धसती

 वृत्त - शुध्दसती
८ २ २ ( - +)

हसतात जर्द पिवळे
घड सोनझुंबरांचे
ग्रीष्मात अनुभवावे
सौंदर्य बहाव्याचे

धग सोसुनी बहावा
सुखहिंदोळे घेतो
वैभव कांचनवर्खी
जगताला दाखवतो

वणव्यातला निखारा
कवटाळुनी उराशी
मिरवतो डौल अपुला
गुलमोहर बघ हौशी

काहिली सोसताना
हसणे जरा पहा तू
शिक पोळुनी बहरणे
गुलमोहराकडे तू

बघ समरसून मनुजा
ऋतुसोहळे धरेचे
सांभाळ तूच आता
औदार्य निसर्गाचे

जयश्री अंबासकर