आकाश पेटले होते
त्या कातर संध्याकाळी
अंतरात उमटत होत्या
विरही कवितेच्या ओळी
कासाविस गूढ उदासी
चादर काळोखी वरती
श्वासांची नुसती धडपड
हृदयाच्या वेशीवरती
व्याकुळ अस्वस्थ क्षणांच्या
पलित्यांचे नृत्य सभोती
संभ्रमात मनडोहाच्या
खळबळ आगंतुक होती
विवरात कृष्ण एकांती
चाहूल कुणाची होती
अंधार भेदुनी किरणे
हलकेच उतरली होती
भ्रम संभ्रम नैराश्याचे
निमिषात वितळले होते
तिमिरात गडद रात्रीच्या
मन लख्ख उजळले होते
जयश्री अंबासकर
Thursday, April 18, 2024
Sunday, February 25, 2024
कुर्बान हम पे कुदरत हुई है
हमको किसीसे उल्फत हुई है
धरती बदलके जन्नत हुई है
उनकी जरासी बस हां हुई है
देखो दिवानी हालत हुई है
दिल में खुशी की दस्तक हुई है
कुर्बान हम पे कुदरत हुई है
गुस्ताख आंखे कुछ कह गयी है
पहली दफा ये जुर्रत हुई है
थोडी शराफत, थोडी शरारत
ऐसी हमारी नीयत हुई है
मांगे खुदासे अब और क्या हम
पूरी हमारी हसरत हुई है
जयश्री अंबासकर
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