Thursday, May 23, 2024
गुनाह कर लो
Wednesday, August 16, 2023
सन्नाटा
Wednesday, July 19, 2023
आजाद रातें
हौले से होती मदहोश रातें
हां चांद भी तो बाहों में था तब
होती थी कितनी धनवान रातें
दिन भी खुशी से, थे जल्द ढलते
तुम्हारे लिये थी बेचैन रातें
होती कहां थी आजाद रातें
लेती थी लेकिन इल्जाम रातें
जीये जा रहा था तुम्हें गुनगुनाते
हुई जा रही थी कुर्बान रातें
गुमसुम हुई कब वो प्यारी सी बातें
लगने लगी अब ये अनजान रातें
लगती थी हमदर्द खामोश रातें
अब क्यूं हुई है बेदर्द रातें
✍️जयश्री अंबासकर
Tuesday, August 17, 2021
रातें
सपने सलोने बुनती है राते चंदा को अपने चुनती है राते सांसोंकी धुन और खामोश बातें धडकन की लय पे चलती है रातें
Monday, July 19, 2021
जी हमें मंजूर है
ख्वाब में उनका सताना जी हमें मंजूर है
निंद आंखोंसे गंवाना भी हमें मंजूर है
महफिले उनकी गजब होगी हमे मालूम है
सिर्फ उनका गुनगुनाना भी हमें मंजूर है
मुस्कुराके रोक लेना कातिलाना है बडा
इस तरह उनका मनाना ही हमें मंजूर है
बात अब हर एक उनकी मान लेते प्यार से
महज उनका हक जताना भी हमें मंजूर है
देर से आना पुरानी आदतों में एक है
झूठ उनका हर बहाना भी हमें मंजूर है
साथ उनका शायराना पल लगे हर खुशनुमा
वक्त का खामोश गाना भी हमे मंजूर है
जयश्री अंबासकर
ये गझल मेरी आवाज में सुन सकते है !!
Tuesday, July 06, 2021
तुम्हारे शहर में
Wednesday, June 23, 2021
दायरा
साथ लाया था वो सेहरा और खिंचा दायरा
अब तो जीवन भर है पहरा और खिंचा दायरा
ख्वाब आंखो में हजारो, जिंदगी की आस है
ख्वाब टूटे, सब है बिखरा और खिंचा
दायरा
दौडना तो दूर है, चलना भी मुश्किल है यहां
बेडियोंके के साथ कोहरा और खिंचा दायरा
बंद कमरा और आंसू, इतनी सीमित जिंदगी
अब तो है गुमनाम चेहरा और खिंचा दायरा
इस फलक पर नाम अपना देखने की चाह है
दिल है घायल, वक्त ठहरा और खिंचा दायरा
कितने दिन ऐसे जियेंगे, बस अभी सारे जुलम
है अटल संघर्ष गहरा और खिंचा दायरा
एक दिन आएगा ऐसा, कुछ करेंगे खुद ही हम
तोड देंगे हर वो पहरा और खिंचा दायरा
जयश्री अंबासकर
ही कविता माझ्या आवाजात खाली दिलेल्या लिंकवर ऐकता येईल
Thursday, June 17, 2021
सन्नाटा
चुस्त लम्हें जिंदगीके खो गये जाने किधर
सुस्त सी खामोशियों में सिर्फ यादोंके भंवर
चंद बादल आसमां मे फिर भी था ऐसा असर
रोशनी सूरज की मेरे खो गयी जाने किधर
दूर तक कोई किनारा,
अब
भी ना आता नजर
डूबती कश्ती में कैसे, खत्म होगा ये सफर
सुबह की ना ताजगी है, रात को ना हमसफर
अब तो हिस्से में पडी है सिर्फ सूनी दोपहर
शोरगुल भी था कभी पर, अब तो जीवन
खंडहर
बस है सन्नाटों में लिपटे, सर्द से शामो सहर
जयश्री अंबासकर
You can listen this गझल on the link below
Monday, June 14, 2021
हमराज
मौजूद था पर आसमां में, चांद कुछ नाराज था
बेशक मेरे मेहबूब के ही, नूर का आगाज था
क्या करू तारीफ उनकी,
हर अदा थी शायरी
शायरीमें कातिलाना,
क्या
गजब अंदाज था
जन्नत से उतरी हूर सी थी, क्या करू लफ़्जोबयां
नर्गिसी मासूम चेहरा, हुस्न का सरताज था
उनकी वो संजीदगी में, नर्म सा संगीत था
खिलखिलाना भी तो उनका, जैसे कोई साज था
शाम की तनहाइयों में दर्द का एहसास था
दर्द ना उनका कभी हमदर्द का मोहताज था
देखी है आंखों में उनकी, दर्द की परछाइयाँ
जख्म क्या था, दर्द क्या था, ये छुपा इक राज था
चंद यादे छोडकर, चुपचाप वो रुखसत हुए
राज सीने में दफन और बस खुदा हमराज था
जयश्री अंबासकर
ये शायरी आप मेरी आवाज में नीचे दी हुई लिंक पर सुन सकते है
Tuesday, April 27, 2021
जी हमें मंजूर है
Friday, April 09, 2021
बडी मुद्दत के बाद
जयश्री अंबासकर
You can listen this on the link given below
Saturday, March 13, 2021
तुम्हारी यादें
Wednesday, February 03, 2021
तुम भी मान लेते