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Thursday, May 23, 2024

गुनाह कर लो

मुहब्बत में आज फिर से हमें तबाह कर लो
इजाजत है आज फिर से वही गुनाह कर लो

निभायेंगे साथ आपका, हमसफर कर लो 
चाहे अपनी मंजिल से हमें गुमराह कर लो

शिद्दत से मिली है मुहब्बत, यकी कर लो
अब तो कमबख्त दिल का इस्लाह कर लो

आशकी के इम्तिहान चाहे बेइंतहा कर लो
वजूद की हमारे थोडी तो परवाह कर लो

फासले कम हो जाए ऐसा इंतजाम कर लो
मंजूर है सौदा हमें जनाब, हां निकाह कर लो

जयश्री अंबासकर 
२३ मे २०२४

Wednesday, July 19, 2023

आजाद रातें

सुनते सुनाते बतियाती रातें
हौले से होती मदहोश रातें

हां चांद भी तो बाहों में था तब
होती थी कितनी धनवान रातें

दिन भी खुशी से, थे जल्द ढलते
तुम्हारे लिये थी बेचैन रातें

होती कहां थी आजाद रातें
लेती थी लेकिन इल्जाम रातें

जीये जा रहा था तुम्हें गुनगुनाते
हुई जा रही थी कुर्बान रातें

गुमसुम हुई कब वो प्यारी सी बातें
लगने लगी अब ये अनजान रातें

लगती थी हमदर्द खामोश रातें
अब क्यूं हुई है बेदर्द रातें

✍️जयश्री अंबासकर 

Tuesday, August 17, 2021

रातें

सपने सलोने बुनती है राते चंदा को अपने चुनती है राते सांसोंकी धुन और खामोश बातें धडकन की लय पे चलती है रातें

उमंगे हजारो सैलाब दिल में तिनके की तरहा बहती है रातें होती है जब भी फुलोंसी बातें असर से सहर तक महकती है रातें सांसों में बजती तरन्नुम नयी सी अंजान राहों पे चलती है रातें बेखौफ़ दिल की लाखों मुरादें सपनों में पूरी करती है रातें तनहाईयों से गुजरती है जब भी हमदर्द बनके छलकती है रातें जयश्री अंबासकर



Monday, July 19, 2021

जी हमें मंजूर है

ख्वाब में उनका सताना जी हमें मंजूर है
निंद आंखोंसे गंवाना भी हमें मंजूर है

महफिले उनकी गजब होगी हमे मालूम है
सिर्फ उनका गुनगुनाना भी हमें मंजूर है

मुस्कुराके रोक लेना कातिलाना है बडा
इस तरह उनका मनाना ही हमें मंजूर है

बात अब हर एक उनकी मान लेते प्यार से
महज उनका हक जताना भी हमें मंजूर है

देर से आना पुरानी आदतों में एक है
झूठ उनका हर बहाना भी हमें मंजूर है

साथ उनका शायराना पल लगे हर खुशनुमा
वक्त का खामोश गाना भी हमे मंजूर है

जयश्री अंबासकर

ये गझल मेरी आवाज में सुन सकते है !!




Tuesday, July 06, 2021

तुम्हारे शहर में

खुशियों के रस्ते तुम्हारे शहर में
मौसम है हसते तुम्हारे शहर में 

तनहाइयों को नही है ठिकाना 
पल है मचलते तुम्हारे शहर में 

मोहब्बत तो होगी हमे भी यकीनन
दिल के फरिश्ते तुम्हारे शहर में

खुशबू तुम्हारी हर इक गली में 
महकते है रस्ते तुम्हारे शहर में  

हमारा शहर भी, शहर तो है लेकिन 
किस्से है बनते तुम्हारे शहर में

चाहे किधर भी रुख हो हमारा
कदम फिर भी मुडते तुम्हारे शहर में 

शादी भले हो हमारे शहर में
रस्मोंकी किश्ते तुम्हारे शहर में 

रफ्तार पकडे दुनिया के रस्ते 
खुशी से टहलते तुम्हारे शहर में 

जयश्री अंबासकर

Wednesday, June 23, 2021

दायरा

 साथ लाया था वो सेहरा और खिंचा दायरा
अब तो जीवन भर है पहरा और खिंचा दायरा

ख्वाब आंखो में हजारो, जिंदगी की आस है
ख्वाब टूटे, सब है बिखरा और खिंचा दायरा

दौडना तो दूर है, चलना भी मुश्किल है यहां
बेडियोंके के साथ कोहरा और खिंचा दायरा

बंद कमरा और आंसू, इतनी सीमित जिंदगी
अब तो है गुमनाम चेहरा और खिंचा दायरा

इस फलक पर नाम अपना देखने की चाह है
दिल है घायल, वक्त ठहरा और खिंचा दायरा

कितने दिन ऐसे जियेंगे, बस अभी सारे जुलम
है अटल संघर्ष गहरा और खिंचा दायरा

एक दिन आएगा ऐसा, कुछ करेंगे खुद ही हम
तोड देंगे हर वो पहरा और खिंचा दायरा

जयश्री अंबासकर

ही कविता माझ्या आवाजात खाली दिलेल्या लिंकवर ऐकता येईल



Thursday, June 17, 2021

सन्नाटा

चुस्त लम्हें जिंदगीके खो गये जाने किधर
सुस्त सी खामोशियों में सिर्फ यादोंके भंवर

चंद
बादल आसमां मे फिर भी था ऐसा असर
रोशनी सूरज की मेरे खो गयी जाने किधर

दूर तक कोई किनारा, अब भी ना आता नजर
डूबती कश्ती में कैसे, खत्म होगा ये सफर

सुबह की ना ताजगी है, रात को ना हमसफर
अब तो हिस्से में पडी है सिर्फ सूनी दोपहर

शोरगुल भी था कभी पर, अब तो जीवन  खंडहर
बस है सन्नाटों में लिपटे, सर्द से शामो सहर

जयश्री अंबासकर

You can listen this गझल on the link below



Monday, June 14, 2021

हमराज

 मौजूद था पर आसमां में, चांद कुछ नाराज था
बेशक मेरे मेहबूब के ही, नूर का आगाज था      

क्या करू तारीफ उनकी, हर अदा थी शायरी
शायरीमें कातिलाना, क्या गजब अंदाज था

जन्नत से उतरी हूर सी थी, क्या  करू लफ़्जोबयां 
नर्गिसी मासूम चेहरा, हुस्न का सरताज था  

उनकी वो संजीदगी में, नर्म सा संगीत था
खिलखिलाना भी तो उनका, जैसे कोई साज था

शाम की तनहाइयों में दर्द का एहसास था
दर्द ना उनका कभी हमदर्द का मोहताज था

देखी है आंखों में उनकी, दर्द की परछाइयाँ  
जख्म क्या था, दर्द क्या था, ये छुपा इक राज था

चंद यादे छोडकर, चुपचाप वो रुखसत हुए
राज सीने में दफन और बस खुदा हमराज था

जयश्री अंबासकर

ये शायरी आप मेरी आवाज में नीचे दी हुई लिंक पर सुन सकते है



Tuesday, April 27, 2021

जी हमें मंजूर है

जी हमें मंजूर है

ख्वाब में उनका सताना जी हमें मंजूर है
निंद आंखोंसे गंवाना भी हमें मंजूर है 

महफिले उनकी गजब होगी हमे मालूम है
सिर्फ उनका गुनगुनाना भी हमें मंजूर है

मुस्कुराके रोक लेना कातिलाना है बडा
इस तरह उनका मनाना जी हमें मंजूर है

बात अब हर एक उनकी मान लेते प्यार से  
महज उनका हक जताना भी हमें मंजूर है

देर से आना पुरानी आदतों में एक है 
झूठ उनका हर बहाना भी हमें मंजूर है

साथ उनका शायराना पल लगे हर खुशनुमा
वक्त का खामोश चलना भी हमे मंजूर है

जयश्री अंबासकर

Friday, April 09, 2021

बडी मुद्दत के बाद

खुद से ही मिलने हूं आई, बडी मुद्दत के बाद
खुद ने हिम्मत है जुटाई, बडी मुद्दत के बाद

खुद से खुद को मिलने की, जरूरत थी आज
खुद को फुरसत है मिल पाई, बडी मुद्दत के बाद

जाने क्या नाराजगी थी खुदकोखुद के साथ
हुई आज ही मूंहदिखाई, बडी मुद्दत के बाद

नजरे खुद से जब मिलाई खुद ने, शरारत से
नजरे खुद से है शरमाई, बडी मुद्दत के बाद

खुद को पाया है आज, बडी शिद्दत के बाद
ऐसी जन्नत है मिल पाई, बडी मुद्दत के बाद

खुद से मुलाकात हुई, बडी शराफत के साथ
खुद से खुद इज्जत है पाई, बडी मुद्दत के बाद

खुद ने रख्खा था खुद को, बडी हिफाजत के साथ
ये खुद ने समझी है खुदाई, बडी मुद्दत के बाद

बातों का कारवां चलता रहा, इबादत के साथ
बाते जज्बाती होती गई, बडी मुद्दत के बाद

खुद से मिलने से पहले, खुद की दहशत सी थी
खुद से ही मुहोब्बत हुई, बडी मुद्दत के बाद

जयश्री अंबासकर

You can listen this on the link given below