Thursday, April 15, 2021

गुमनाम सफर

गुमनाम था सारा सफर
परवाह ना कोई फिकर
मंजूर था ये फैसला
न होगा कभी उसका जिकर

मौजूदगी थी उम्रभर
वो थी खडी हर राह पर
रंजिश न थी कोई कभी
के था वजूद, जैसे सिफर

एक दिन आया कहर
थी एक सूनी दोपहर
घरपर हुआ हमला मगर
घरबार था कुछ बेखबर

वहशी ही थे वो जानवर
संकट तो था भारी मगर
खूंख्वार बनकर शेरनी
वो सामने आयी नजर

तुफान का रुख मोडकर
इज्जत लगायी दांवपर
बरबाद होने से बचाया
जानपर यूं खेलकर

भूचाल सी थी, वो खबर  
के हिल गया सारा शहर
बात निकली बात से
होने लगा उसका जिकर

परदा किया था उम्रभर
बदलाव था ऐसा मगर
मिलने लगा सम्मान, आदर
अब उसे शामो सहर

जयश्री अंबासकर

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3 comments:

THINK WITH ME Hindi said...

wow such a amazing writing man
keep it up

जयश्री said...

शुक्रिया !!

जयश्री said...

शुक्रिया 😊