Wednesday, July 19, 2023

आजाद रातें

सुनते सुनाते बतियाती रातें
हौले से होती मदहोश रातें

हां चांद भी तो बाहों में था तब
होती थी कितनी धनवान रातें

दिन भी खुशी से, थे जल्द ढलते
तुम्हारे लिये थी बेचैन रातें

होती कहां थी आजाद रातें
लेती थी लेकिन इल्जाम रातें

जीये जा रहा था तुम्हें गुनगुनाते
हुई जा रही थी कुर्बान रातें

गुमसुम हुई कब वो प्यारी सी बातें
लगने लगी अब ये अनजान रातें

लगती थी हमदर्द खामोश रातें
अब क्यूं हुई है बेदर्द रातें

✍️जयश्री अंबासकर 

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